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आर्य और काली छड़ी का रहस्य-16


    अध्याय-5
    युद्ध क्षेत्र
    भाग-3
    
   ★★★

    “हां तो सबसे पहले कौन आगे आएगा?” अचार्य वीरसेन ने पुछा। वह विद्यार्थियों की परीक्षा लेने के लिए तैयार थे। उन्हें विद्यार्थियों के डर और साहस का परीक्षण करना था।

    किसी भी लड़के की आगे जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी। पहल करना सबसे मुश्किल कार्य होता है।

    “हां ... चलो ... तुम आओ।” अचार्य वीरसेन ने कतार में खड़े पहले लड़के को आगे आने का इशारा किया। “तुम योद्धा हो योद्धा, हर काम में आगे रहना तुम्हारे खून में होना चाहिए।” आचार्य ने बच्चे का जोश बढ़ाते हुए उसे प्रोत्साहित किया।

    “हां .. हा गुरुवर।” लड़के के होंठ कंपकंपा रहे थे। मगर आचार्य वीरसेन के शब्दों के बाद उसमें हिम्मत आ गई थी।

    लड़का निकल कर कुछ कदम आगे आ गया। उसके आगे आ जाने के बाद आचार्य वीरसेन चहल कदमी करते हुए पीछे हटें। पीछे हटने के बाद उन्होंने अपनी आंखें बंद की और कुछ मंत्र बुदबुदाए। उनके मंतर बुदबुदाते ही सामने की एक छोटी बर्फीली सतह पर दरारें आने लगी। फिर ठीक इसके अगले पल वहां बर्फ के टुकड़े नीचे गिर गए और पानी बाहर आ गया।

    अचार्य वीरसेन बोले “यह लो, मैंने यहां ठंडा पानी ला दिया है। अब इस ठंडे पानी में जाओ और अपने डर और साहस के अंतर्द्वंद का सामना करो।”

    लड़का डरते हुए आगे बढ़ने लगा। उसके पैर वैसे वैसे कांप रहें थे जैसे जैसे वह पानी के नजदीक जा रहा था। पानी के नजदीक जाते ही वह तेजी से उसके अंदर गया, कुछ सेकंड रुको और फिर बाहर आ गया। बाहर आने के बाद उसकी हालत बुरी हो गई थी। उसे ठंड लगने लगी थी। शरीर में ठंड की सूरसुरी सी भी दौड़ रही थी।

    आचार्य वीरसेन ने बाकी के विद्यार्थियों को आगे आने के लिए कहा “तुम सब अब बारी बारी से आगे आओ।”

    विद्यार्थियों की कतार में आगे वाले विधार्थी पानी के अंदर जाने लगे। हर कोई जितना जल्दी पानी के अंदर जाता उतना ही जल्दी बाहर आ जाता। धीरे धीरे लड़कों की बारी आयुध के पास आने वाली थी।

    आयुध अपनी जगह पर खड़े खड़े ही घबरा रहा था। उसने घबराते हुए वापस आर्य से कहा “क्या यहां से बचकर निकल जाने का कोई रास्ता नहीं है। तुम्हें कोई ऐसा जादू आता है जिससे तुम किसी को भी गायब कर सको? अगर आता है तो मुझे गायब कर दो?”

    आर्य ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा “गायब करने वाला क्या, मुझे तो कोई भी जादू नहीं आता।”

    “धत्त तेरी की..” आयुध खुद को कोसता हुआ बोला “कल रात तुम लोग मुझे वापस ना लेकर आते तो यह हालात ना देखने को मिलते। मैं तो कभी आश्रम में भी नहीं नहाता, वह भी तब जब पानी गर्म होता है। अब मुझे यहां ठंडे पानी में जाना पड़ेगा।”

    उसके कहते-कहते उसकी बारी आ गई। सभी लड़कों के आगे बढ़ने का सिलसिला रुक गया था। क्योंकि आयुध अपने ही जगह पर खड़ा बड़बड़ कर रहा था।

    उसे ना चलता देखो अचार्य वीरसेन ने तेज आवाज में कहा “आगे बढ़ो योद्धा। तुम योद्धा हो और योद्धा कभी रुकता नहीं।”

    आयुध ने तेज तेज सांसे ली और धीरे-धीरे बर्फीले पानी की तरफ बढ़ने लगा। उसके पास ऐसा कोई रास्ता नहीं था जिससे वह बच कर निकल सके। पानी में तो उसे जाना ही था। यही सोचकर उसने अपनी आंखें बंद की और तेजी से पानी में घुस गया। इसके बाद वह उसी समय ही बाहर निकल गया।

    पानी से भीगने के बाद वह कापंता हुआ वहां जाकर खड़ा हो गया जहां पहले ही काफी सारे भीगे हुए विद्यार्थी खड़े थे। धीरे-धीरे और विधार्थी पानी में जाने लगें। और एक समय ऐसा भी आया जब आर्य की पानी में जाने की बारी आई। आर्य पानी की तरफ बढ़ रहा था तो उसे अपने बाबा के कुछ शब्द याद आए। उसके बाबा ने कहा था “कभी भी अपनी शक्तियों का प्रदर्शन बिना किसी कार्य के मत करना। महान इंसान बनने के लिए शक्तियां नहीं बल्कि इंसानियत चाहिए।” आर्य ने उन शब्दों को याद किया और पानी में चला गया। उसे पानी में ठंड के अहसास नहीं हुए थे, मगर इसके बावजूद वह जल्दी बाहर आ गया। उसे अपनी शक्तियों का प्रदर्शन नहीं करना था। बाहर आने के बाद उसकी हालत बाकी विद्यार्थियों की तरह नहीं थी। वह ठंड से कांप नहीं रहा था। लेकिन इस बात पर किसी ने खास ध्यान नहीं दिया। आर्य के बाद बाकी के विद्यार्थियों का पानी में आने-जाने का सिलसिला जारी हुआ।

  सभी विद्यार्थियों के पानी में से निकल जाने के बाद आचार्य वीरसेन ने कहा “आज तुम लोगों ने ठंडे पानी का सामना कर दिखा दिया कि तुम लोग अपने डर का सामना कर सकते हो। तुम लोग डर के सामने अपना साहस जुटा सकते हो। भले ही यह कुछ ही समय के लिए क्यों ना हो। अकों के आधार पर जिस विद्यार्थी ने आज सबसे ज्यादा ठंडे पानी में समय व्यतीत किया, उसका नाम ताक्षणु है।” उन्होंने एक विद्यार्थी का नाम लिया जो वहीं विद्यार्थियों के झुंड में मौजूद था। सभी ने तालियां बजाई। इसके बाद आचार्य वीरसेन बोले “आज तुम लोगों के लिए इतना ही अभ्यास था। योद्धा बनने से पहले तुम लोगों का डर निकालना जरूरी है, और वह मैं निकाल रहा हूं। अब कल तुम लोगों के अगले चरण में की शुरुआत होगी। जिसमें सभी को तलवारे पकड़ाई जाएंगी। जो विद्यार्थी तलवारबाजी पहले से ही जानते हैं, वह अलग अभ्यास करेंगे। और जो विद्यार्थी तलवारबाजी नहीं जानते, या फिर जो नए हैं, वह अलग अभ्यास करेंगे। ‌ अब तुम लोग यहां कुछ देर के लिए बातें कर सकते हो, रात को ठीक 8:30 बजे युद्ध क्षेत्र से जाने की अनुमति मिल जाएगी।”

    इतना कहकर आचार्य वीरसेन वहां से चले गए। जबकि विद्यार्थियों का झुंड इधर-उधर फैल गया। दूसरी ओर लड़कियों को अभी भी जादू सिखाया जा रहा था। वहां लड़कियों में शामिल हिना जोर शोर से अपनी नीली रोशनी वाले जादू का अभ्यास कर रही थी। आर्य ने कुछ देर के लिए उसे देखा, जिस पर आयुध ने भी गौर किया। रात के 8:30 बजते बजते लड़कियों की शिक्षा भी पूरी हो गई थी। और सभी एक साथ युद्ध क्षेत्र से वापस आश्रम के लिए चल पड़े।

    ★★★
    
    रात के 9:00 बजे सब खाना खाने के लिए इकट्ठा हो गए थे। आर्य और आयुध ने आकर अपने कपड़े बदल लिए थे। जबकि हिना अपने पहले वाले कपड़ों में ही थी। आयुध भोजनालय में काम करता था इसलिए वह खाना परोस रहा था जबकि हिना और आर्य एक दूसरे के पास पास बैठे थे। वह दोनों इतना पास थे कि उनकी बाहें भी आपस में टकरा रही थी।
    
    हिना आयुध को देखते हुए बोली “मैं सोच रही हूं क्यों ना अपने भाई को भोजनालय से हटा कर तलवारबाजी सिखाने के लिए ही लगा दूं। भोजनालय में उसका ध्यान भटकता रहता है, जबकि तलवारबाजी में उसके अंदर जोश आएगा।”
    
    आर्य ने भी आयुध की तरफ देखा “तुम्हें नहीं लगता इसमें उसकी मर्जी होनी चाहिए। वह आखिर करना क्या चाहता है?”
    
    “उसे इतनी अक्ल कहां है...? मैं तो जब भी उसे देखती हूं तो यही लगता कि वह बस आश्रम छोड़ना चाहता है। पता नहीं किसने उसके दिमाग में ऐसी सोच डाल दी। वह इसके अलावा मुझसे अब किसी दूसरी चीज के बारे में बात ही नहीं करता। तंग आकर तो मैंने उसे तुम्हारी निगरानी में रखा।”
    
    “तुमने यह जानने की कोशिश की क्या की वो आश्रम क्यों छोड़ना चाहता है? मतलब कल रात जब हमने उससे पूछा था तो उसने कहा मेरा यहां दम घुटता है। यह कोई ऐसा जवाब नहीं जो आश्रम छोड़ने का बड़ा कारण हो। इस तरह की चीजों की वजह से कोई भी कभी किसी जगह को छोड़कर नहीं जाता।”
    
    “मैंने यह जानने की कोशिश तो नहीं की अभी तक।” हिना खाना खाते हुए बोली “लेकिन मुझे नहीं लगता उसके पास कोई बड़ा कारण होगा। उसकी बस जिद है आश्रम छोड़ने की। और अगर कोई बड़ा कारण होगा भी तो तुम उससे पूछ सकते हो। अब वह तुम्हारी निगरानी में है और रात को तुम्हारे पास ही सोएगा। यह एक अच्छा मौका होगा तुम्हारे लिए।”
    
    आर्य हंसता हुआ बोला “तुम्हें लगता है वह मुझे बता देगा? हें? उसने जब तुम्हें नहीं बताया तो मुझे क्या बताएगा। ‌ मेरा तो उसे कोई रिश्ता भी नहीं।”
    
    “लेकिन...” हिना अपनी बातों को टुकड़ों में तोड़ते हुए बोली “मैंने—सुना—हैं—लडकों—की—आपस—मैं—ज्यादा—बनती—हैं।” वह वापिस सामान्य हो गई “इस वजह से वह एक दूसरे से कुछ खास छुपाते नहीं। तुम अपनी तरफ से कोशिश करना, क्या पता तुम्हें कामयाबी मिल जाए।” 
    
    “मैं इस बारे में अपनी तरफ से कोशिश जरूर करूंगा।” आर्य ने हामी भर दी और उसके बाद वापिस आयुध की तरफ देखा। वह पहले से ही उसे ही घुर रहा था। “लेकिन सावधानी से...।”
    
    जल्द ही सभी ने खाना खा लिया। आर्य और हिना खाना खाने के बाद बाहर हाथ धो रहे थे। हिना हाथ धोते हुए बोली “मैंने तुम्हें अब लगभग आश्रम के बारे में सब कुछ बता दिया है। तुम्हें आश्रम की ना जाने वाली जगहों के बारे में और दिनचर्या के बारे में भी सब पता चल गया है। फिर नियम और कायदे भी बता दिए। तो अब तुम....।” हिना इतना कह कर चुप कर गई।
    
    “अब तुम क्या?”
    
    हिना ने अपने हाथ धोए और वहां मौजूद कपड़े से साफ करते हुए बोली। “अब तुम यहां आश्रम में खुद से घुम फिर सकते हो। एक तरह से तुम अब यहां के आजाद विद्यार्थी हो। और तुम्हें कहीं भी जाने के लिए मेरा इंतजार नहीं करना पड़ेगा।”
    
    “तो क्या अब हमारी आगे मुलाकात नहीं होगी? क्या हमारी मुलाकात यही तक थी? मैं तो तुम्हारे भाई को भी अपने पास रख कर संभाल रहा हूं।” आर्य सब कुछ जल्दी जल्दी में और सवालिया अंदाज में पूछ रहा था।
    
    हिना ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहा “मैंने ऐसा तो कुछ भी नहीं बोला। हम आगे भी मिलते रहेंगे। मगर अब मैं तुमसे आश्रम की दिनचर्या या क्या करना है इस विषय को लेकर नहीं मिलूंगी। अब हमारी मुलाकातें दोस्तों की तरह होगी। जैसी आश्रम में बाकी लोगों की होती है।”
    
    आर्य के चेहरे पर मुस्कान आ गई। इतने में हिना का भाई आयुध भी खाना खाकर बाहर आ गया। हिना और आर्य दोनों पास पास ही खड़े थे। आयुध जानबूझकर उन दोनों के बीच में से निकला और उन्हें दूर दूर कर दिया। वह उन दोनों के बीच में से निकलकर हाथ धोने लगा था। हिना वापिस आर्य के करीब आई और बोली “चलो मैं चलती हूं अब। आज दीवार पर घूमने का मन भी नहीं है। तुम मेरे भाई के साथ आराम से रहना।” इसके बाद उसने हाथ धो रहे आयुध से कहा “और आयुध... तुम भी आर्य को तंग मत करना।”
    
    आयुध का चेहरा दूसरी तरफ था। वहां उसने गुस्से वाला मुंह बनाते हुए कहा “मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगा... मेरी प्यारी बहन” वह हाथ साफ करने लगा तो वहां उसने हाथ साफ करने वाले कपड़े को बुरी तरह से नोच दिया। 
    
    ★★★
    
    
    

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2 Comments

Rohan Nanda

20-Dec-2021 10:52 PM

Good writing skill

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Arshi khan

19-Dec-2021 11:30 PM

Vaah ... Aapka lekhn Kamal h, story me dub hi jate hn

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